मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार के साथ 'अग्निपथ' पर चल पड़े हैं सिंधिया और कमलनाथ

मुख्यमंत्री शिवराज के लिए है कांटों भरा ताज
मंत्रिमंडल विस्तार में केंद्रीय नेतृत्व ने दिया नई यथार्थवादी भाजपा का संदेश
शिवराज सिंह चौहान ने अपनी तुलना समुद्र मंथन के बाद निकले विष को पीने वाले भगवान शिव से की थी


मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह सरकार का बहुप्रतीक्षित मंत्रिमंडल विस्तार हो गया। मंत्रिमंडल विस्तार में केंद्रीय नेतृत्व ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की लाज रख ली है। केंद्रीय नेतृत्व (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा) ने मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए नई यथार्थवादी भाजपा का संदेश दिया है।


सभी वर्गों, अंदरूनी गुटों,वरिष्ठ-युवाओं के प्रतिनिधित्व का ख्याल रखा है। मंत्रिमंडल विस्तार ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को अग्निपथ पर लाकर खड़ा किया है। उनके सामने कांग्रेस पार्टी के अग्निपथ के नायक कमलनाथ हैं।


कुल मिलाकर 24 सीटों उपचुनाव न केवल दोनों के निर्णायक, बल्कि बड़ा रोचक होने वाला है।
मंत्रिमंडल विस्तार हुआ तो समय पर उपचुनाव भी होगा?
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया। अब यकीन मान लीजिए कि समय पर 24 सीटों का उपचुनाव भी हो जाएगा।


सूत्र का कहना है कि 24 सीटों में 20 से अधिक भाजपा सीटें जीतेगी। ग्वालियर-चंबल संभाग में 16 सीटों पर उपचुनाव होना है, हम जीतेंगे।


दो सीटें कांग्रेस और भाजपा के विधायकों के निधन से खाली हुई हैं। छह सीटें ज्योतिरादित्य के समर्थक विधायकों के साथ आए कांग्रेस पूर्व विधायकों की हैं।


मध्यप्रदेश की राजनीति पर गहरी पकड़ रखने वाले भाजपा नेता का कहना है कि इनमें 22 सीटें भाजपा के खाते में आ सकती है। बताते हैं मंत्रिमंडल के विस्तार में इसका खास ख्याल रखा गया है।



अग्निपथ के दोनों नायक की अब शुरू होगी बाजी!
कांग्रेस पार्टी के पूर्व महासचिव का मानना है कि मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की जिम्मेदारी काफी बढ़ गई है। कांग्रेस हाई कमान ने मध्यप्रदेश में राजनीतिक मामले में अभी कमलनाथ के ऊपर ही सारा दारोमदार टिका रखा है।


कमलनाथ के कंधे को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहारा दे रहे हैं। मध्य प्रदेश के पूर्व प्रभारी का कहना है कि ऐसे में उपचुनाव काफी अहम है। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह इसमें सफलता पाने के लिए अप्रैल महीने के बाद से ही गोट बिछा रहे हैं।


भाजपा की तरफ से उपचुनाव का बड़ा चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस फिगर में सेंध लगाना चाह रहे थे। इसके लिए भाजपा के ग्वालियर चंबल संभाग के तमाम नेताओं (पूर्व विधायकों और अन्य) का समर्थन हासिल था।


केंद्र के भी कुछ नेता ज्योतिरादित्य को बहुत ज्यादा महत्व देने के पक्ष में नहीं थे। लेकिन मध्यप्रदेश के प्रभारी, राज्यसभा सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे का एक वाक्य लाख टके का है। वे कहते हैं कि ज्योतिरादित्य अब भाजपा में हैं। वह और उनके सभी समर्थक हमारे हैं।


सहस्त्रबुद्धे की यह लाइन सच पूछिए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की लाइन है। पार्टी अंदरुनी मतभेद निबटाकर बड़ी सफलता चाहती है।


इसलिए केंद्रीय नेतृत्व ने न केवल उनका मान रखा, बल्कि कई पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सलाह को नजरअंदाज भी किया। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की सलाह को वरीयता दी। अब ज्योतिरादित्य सिंधिया को इसके महत्व को साबित करना है।


उपचुनाव में मिली सीटों की संख्या ही इसका मूल्यांकन और भाजपा की राजनीति में मध्यप्रदेश से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक उनके भविष्य का रास्ता तय करेगी।


समझा जा रहा है कि ज्योतिरादित्य इसे बखूबी समझ रहे हैं। वह इसे पूरा करने के लिए केंद्रीय नेतत्व, राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर हर स्तर का दबाव भी बनाकर रखेंगे।


भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने रखी सबकी लाज, शिवराज को किया शांत
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दो दिन पहले अपनी तुलना समुद्र मंथन के बाद निकलने वाले विष को पीने वाले भगवान शिव से की थी। यह तुलना अकारण नहीं थी। शिवराज जो फार्मूला लेकर आए थे, केंद्रीय नेतृत्व ने उसमें कई बारीकियों को समझते हुए संशोधन कर दिया है।


हालांकि अंत में शिवराज की पसंद का ख्याल रखा है। शिवराज के मंत्रिमंडल में उनके विरोधी माने जाने वाले कैलाश विजयवर्गीय की छाप दिखाई पड़ रही है। नरेंद्र सिंह तोमर मौजूद हैं।


किसी गुट में न रहने वाले पुराने नेता भी मौजूद हैं। शिवराज के सिवा कई गुटों में पकड़ बनाने वाले नरोत्तम दमदारी से मौजूद हैं। परिवारवाद की राजनीति की परवाह न करते हुए भाजपा ने यशोधरा राजे सिंधिया को मंत्री बनाया है।


भूपेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव को स्थान मिलना काफी कुछ कह रहा है। जो कभी मंत्री नहीं बने उन्हें, नए विधायक और युवाओं को महत्व मिला है।


सिंधिया के बागी होने के बाद उनके गुट से अलग और साथ गए तीन विधायकों से भी भाजपा नेतृत्व ने किया अपना वादा पूरा किया।


कुल मिलाकर केंद्रीय नेतृत्व ने संदेश देने की कोशिश है कि सबको केंद्रीय नेतृत्व देख रहा है। वह अपने अच्छे नेताओं की मेहनत को नजरअंदाज नहीं कर सकता।


इसका एक संदेश यह भी है कि कड़वा घूट पीकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सबको साथ लेकर चलने की आदत डाल लें।