रिर्सच डेस्क. कोरोना महामारी को फैले 130 दिन हो चुके हैं। इस दौरान पूरी दुनिया में 40 लाख से ज्यादा लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। 2.7 लाख लोगों की जान जा चुकी है। कोरोना की रोकथाम के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक और शोधकर्ता पहली सफलता के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं।
कोरोना, जिसे मेडिकल भाषा में SARS-CoV-2 भी कहा जाता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक, इस महामारी की रोकथाम के लिए फिलहाल दुनिया की 102 संस्थाएं वैक्सीन खोजने में जुटी हुई हैं। 120 संभावित टीकों पर परीक्षण भी चल रहा है। इस काम में 80 से ज्यादा देशों की मेडिकल संस्थाएं सयुंक्त रूप से भी शोध में लगी हुई हैं।
भारत, जर्मनी, अमेरिका की स्वास्थ्य संस्थाएं एक साथ मिलकर रिसर्च कर रही हैं। चीन ने सबसे पहले 4 मार्च, अमेरिका ने 24 मार्च, ब्रिटेन ने 21 अप्रैल, इजराइल ने 5 मई, इटली ने 6 मई और नीदरलैंड्स ने 7 मई को वैक्सीन या एंटीबॉडी बनाने का दावा किया। दुनिया की मीडिया में भी कोरोना की एंटीबॉडी, वैक्सीन बनाने की और इलाज की औसतन हर दूसरे दिन एक नई खबर आ रही है।
- चीन- मिलिट्री मेडिकल साइंस अकादमी ने किया सबसे पहले वैक्सीन बनाने का दावा
4 मार्च को चीन से खबर आई कि 53 साल की शेन वेई के नेतृत्व वाली टीम ने मिलिट्री मेडिकल साइंस अकादमी में कोरोना से बचने की वैक्सीन बनाने में कामयाबी पाई है। यह चीन की प्रतिष्ठित अकादमी है, जिसमें 26 विशेषज्ञ, 50 से ज्यादा वैज्ञानिक और 500 से ज्यादा अनुभवी लोग काम करते हैं। इसके अलावा चीन की तीन अन्य कंपनियों कैनसिनो बायोलॉजिक्स, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स, सिनोवेक बायोटेक ने भी दावा किया कि वे वैक्सीन के ट्रॉयल के प्रथम चरण में हैं। सिनोवेक बायोटेक तो मनुष्यों पर ट्रॉयल करने का दावा भी कर रही है।
- अमेरिका- फार्मास्युटिकल कंपनी मॉडर्ना ने कहा- 2020 के अंत तक बनने लगेगी वैक्सीन
अमेरिका की फार्मास्युटिकल कंपनी मॉडर्ना कोविड-19 के टीके की टेस्टिंग पर काम कर रही है। कंपनी ने 24 मार्च को ऐलान किया कि वो 2020 के अंत तक टीके बनाने लगेगी। फाइजर, जाॅनसन एंड जाॅनसन भी वैक्सीन पर शोध कर रही हैं। इसके अलावा गिलियड साइंसेज कंपनी ने रेमडेसिवर नामक दवा बनाई है, जिसे हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के बाद कोरोना से बचने की अब तक की सबसे कारगर दवा मानी जा रही है। 6 मई को जापान ने भी इसे मान्यता भी दे दी।
- ब्रिटेन- 23 अप्रैल से वैक्सीन का ट्रायल शुरू हुआ, वैज्ञानिकों को 80 फीसदी सफलता की उम्मीद
लंदन में कोरोना वैक्सीन पर काम कर रहे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 23 अप्रैल को टीके के परीक्षण का दावा किया। ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री मैट हैनकॉक ने इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग दवा खोजने की कोशिश में हर संभव प्रयास कर रहा है। इसके लिए शोधकर्ताओं को 2 करोड़ पाउंड की राशि उपलब्ध कराई गई है। वहीं, टीका बनाने वाले वैज्ञानिकों ने 80 फीसदी सफलता की उम्मीद जताई।
- इजरायल- आईआईबीआर ने मोनोक्लोन तरीके से वायरस पर हमला करने वाली एंटीबॉडी विकसित की
5 मई को तेल अवीव से खबर आई कि इजरायल इंस्टीट्यूट फॉर बॉयोलॉजिकल रिसर्च (आईआईबीआर) ने एक ऐसी एंटीबॉडी बनाने में कामयाबी हासिल की, जो मोनोक्लोन तरीके से कोरोना वायरस पर हमला करती है। इजराइल के रक्षा मंत्री नैफ्टली बेनेट के मुताबिक, एंटीबॉडी मोनोक्लोनल तरीके यानी यह व्यक्ति के शरीर के अंदर ही वायरस को मारने में सक्षम है। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि वैक्सीन का ट्रायल इंसानों पर हुआ है या नहीं।
- इटली- टैकिज बॉयोटेक ने दावा किया उसकी वैक्सीन सबसे एडवांस स्टेज पर हैं
6 मई को रोम से खबर आई कि टैकिज बॉयोटेक ने एक ऐसे टीके का विकास किया है, जो टेस्टिंग के सबसे एडवांस स्टेज पर है। टैकिज के सीईओ लुईगी ऑरिसिचियो ने इटैलियन न्यूज एजेंसी एएनएसए को बताया कि इस वैक्सीन का जल्द ही ह्यूमन टेस्ट किया जाएगा। इस वैक्सीन से चूहों में एंटीबॉडी विकसित किए गए हैं। विकसित एंटीबॉडी वायरस को कोशिकाओं पर हमला करने से रोकती है। दावा किया गया कि यह इंसान की कोशिकाओं पर भी काम करती है।
- नीदरलैंड : 47D11 नामक एंटीबॉडी कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन को ब्लॉक करने में सक्षम
नीदरलैंड्स में यूट्रेच्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने 47D11 नामक एक ऐसी एंटीबॉडी की खोज की है, जो कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन को जकड़कर ब्लॉक कर देती है, क्योंकि कोरोना शरीर में संक्रमण फैलाने के लिए इसी स्पाइक प्रोटीन से कोशिकाओं को जकड़ता है। शोधकर्ताओं ने लैब में अलग-अलग कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन को चूहे की कोशिकाओं में इंजेक्ट किया। इसमें SARS-CoV2, सार्स और मर्स के वायरस भी शामिल थे। शोधकर्ताओं ने कोरोना को हराने वाली चूहे की 51 एंटीबॉडीज अलग की। इनमें से सिर्फ 47D11 नाम की एंटीबॉडी ऐसी थी जो संक्रमण को रोकने में सफल थी।
- भारत: सीएसआईआर समेत कुछ संस्थान फिलहाल टीके के परीक्षण में जुटे हैं
भारत में वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर) covid-19 के टीके का परीक्षण कर रही हैं, इसके अलावा अहमदाबाद की दवा कंपनी हेस्टर बायोसाइंसेज ने 22 अप्रैल को घोषणा की थी कि वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गुवाहाटी के साथ मिलकर कोरोना का टीका विकसित करेगी। गौरतलब है कि इससे पहले पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ने दावा किया था कि वह सितंबर-अक्टूबर तक कोरोना का टीका लेकर आएगी, जिसकी कीमत करीब 1000 रुपए होगी।
- प्लाजमा थेरेपी- चिकित्सकों के अनुसार, जिस व्यक्ति को एक बार कोरोना होता है, यदि वह ठीक हो जाता है तो उसके रक्त में एंटीबॉडीज विकसित हो जाती हैं। ऐसे लोगों के ब्लड से प्लाज्मा निकालकर अन्य कोरोना मरीज को दिया जाता है तो उसके ठीक होने की उम्मीद रहती है। इस ट्रीटमेंट स्ट्रेटजी पर अमेरिका के साथ-साथ भारत में भी काम हो रहा है।
- एंटीबॉडी- ये प्रोटीन से बनीं खास तरह की इम्यून कोशिकाएं होती हैं, जिसे बी-लिम्फोसाइट कहते हैं। जब भी शरीर में कोई बाहरी चीज (फॉरेन बॉडीज) पहुंचती है तो ये अलर्ट हो जाती हैं। बैक्टीरिया या वायरस को निष्प्रभावित करने का काम यही एंटीबॉडीज करती हैं। इस तरह ये शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा देती हैं, जिससे हर तरह के रोगाणुओं का असर बेअसर हो जाता है।
- हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन- यह सबसे चर्चित दवा है। इसे कोरोना के इलाज के इस्तेमाल किया जा रहा है। यह दवा मलेरिया बुखार में मरीज को दी जाती है। गत दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से इस दवा की मांग की थी, जिसके बाद कोरोना से निपटने के लिए 45 देशों ने भारत से हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा की मांग की। भारत ने 30 देशों को इस दवा की सप्लाई के लिए स्वीकृति भी दी।
- रेमडेसिवीर- यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो मेडिसिन के शोधकर्ताओं के अनुसार कोरोना के इलाज के दौरान 125 लोगों को रेमडेसिवीर दवा दी गई, जिसके बाद उनकी सेहत में तेजी से सुधार देखा गया। हालांकि अभी अमेरिका की बायो टेक्नोलॉजी कंपनी गिलेंड साइंस इसके क्लीनिकल परीक्षण में लगी है। नतीजे आने तक इसे ट्रायल दवा के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल इबोला के इलाज के लिए भी किया गया है।