भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को 1 राज्यसभा, 1 केन्द्रीय मंत्री, 1 उपमुख्यमंत्री, 12 कैबिनेट मंत्री, और 22 बागियों को बीजेपी से विधानसभा टिकट का वादा एवं प्रति विधायक एक बड़ी कीमत देकर मध्यप्रदेश की सरकार गिराने और अपनी सरकार बनाने में तो सफलता हासिल कर ली, लेकिन अब इसके आगे की डगर मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन भी है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोचा था की अन्य नेताओं के दल बदलने पर होने वाली छोटी-मोटी प्रतिक्रिया की तरह ही उनसे भी एक-दो दिन तक लोग सवाल करेंगे और फिर सब कुछ सामान्य हो जायेगा, लेकिन इसके बिलकुल विपरीत हुआ। जहाँ देश भर के लोगों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने को नासमझी भरा आत्मघाती कदम बताया वहीं सोशल मीडिया पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को गद्दार से लेकर तो तरह-तरह के स्तरहीन शब्दों से संबोधित किया जाने लगा। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न तो कभी जनता से इतनी गलियां सुनी थी और ना ही उनने खुद कभी इसकी कल्पना की थी, लेकिन सिंधिया की एक गलती ने उन्हें श्रीमंत और महाराजा से गद्दार की उपाधी दिला दी।
जब सिंधिया का ये हाल है तो 22 बागियों के साथ जनता क्या व्यवहार कर रही होगी उसकी कल्पना तो आप कर ही सकते हैं। बस इतना बता दें की लोग इन 22 बागियों की सोशल मीडिया पोस्ट का इन्तजार करते हैं और जैसे ही ये कोई पोस्ट डालते हैं हजारों की तादाद में लोग उनसे उनके बिकने की कीमत और जनता से धोखे का कारण पूंछ कर खिचाई करने लगते हैं। कुछ बागियों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट डिलीट कर दिए हैं तो कुछ ने नया अकाउंट बनाने की तैयारी कर ली है।
वहीं बीजेपी खेमें में इन बागियों की अब ना तो कोई जरुरत है और ना ही कोई पूंछ परख, क्योंकि सब जानते हैं कि ये बागी जब अपनी मातृ संस्था को धोखा दे सकते हैं तो फिर ये किसी को भी और कभी भी धोखा दे सकते हैं। ये बागी दिल्ली में बीजेपी में तो शामिल हो गए लेकिन आज तक इनसे इनके जिले का भाजपा जिलाध्यक्ष तक मिलने नहीं आया। ये सब अपने साथ अपने पुराने चमचे भी लेकर बीजेपी में शामिल होने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन इन्हें तब झटका लगा जब एक बीजेपी नेता ने कह दिया की हमें केवल विधायक की जरुरत थी, कार्यकर्ता, जिला अध्यक्ष और प्रवक्ताओं की बीजेपी में पहले से ही भरमार है इसलिए सिर्फ विधायक ही आयें, उनके समर्थक नहीं।
अब ये 22 नेता बीजेपी में तो आ गए लेकिन बीजेपी के छत्रप इन्हें एक बोझ से ज्यादा कुछ भी नहीं समझ रहे हैं, एक ऐसा बोझ जिसे जितनी जल्दी उतार फेंका जाय उतनी जल्दी राहत महसूस होगी। अब ये सभी बागी उस पार्टी, उस नेता और उस कार्यकर्ता के भरोसे हैं जिसे 2018 में हराकर ये विधानसभा पहुंचे थे। इन्हें पैसा मिल गया, मंत्री पद भी मिल जायेगा, विधानसभा का टिकट भी मिल जायेगा लेकिन बीजेपी के उस नेता या उस कार्यकर्ता को क्या मिलेगा जो एक साल पहले ही इनसे पराजित हुआ था।
चलो एक बार के लिए बीजेपी कार्यकर्ता मन मारकर इनका साथ दे भी दे तो क्या उस क्षेत्र का वो बीजेपी नेता या विधायकी का दावेदार भी इनका साथ दे पायेगा..? हरगिज नहीं, क्योंकि यदि ये बागी एक बार उस क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत गए तो फिर हमेशा इन बागियों को ही वहां से टिकट मिलेगा और सालों से टिकट का इन्तजार कर रहे बीजेपी नेताओं का राजीतिक जीवन समाप्त हो जायेगा।
चलो एक पल के लिए मान लें की सब ठीक हो गया तो फिर ग्वालियर क्षेत्र से नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रभात झा, जयभान सिंह पवैया, रुस्तम सिंह और नरोत्तम मिश्रा को वीआरएस लेना होगा क्योंकि अब यहाँ के सबसे बड़े नेता तो सिंधिया होंगे। इसी तरह सागर क्षेत्र में गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह समेत सभी बीजेपी नेताओं के ऊपर गोविन्द सिंह राजपूत होंगे। मालवा क्षेत्र में तुलसी सिलावट बीजेपी नेताओं के राजनीतिक जीवन को कुचलकर शिखर पर पहुँच जायेंगे। कुल मिलाकर बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सरकार नहीं बनाई है बल्कि अपने नेताओं के राजनीतिक अस्तित्व की कबर खोदी है।
वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं जब बागी नेता सिंधिया पर चढ़ाई करेंगे, सिंधिया बीजेपी नेताओं पर चढाई करेंगे, बीजेपी नेता इस चढ़ाई का बदला बागियों को चुनाव में पराजित करवाकर लेंगे और छह माह बाद बीजेपी विपक्ष में, बागी घर में और कमलनाथ सरकार में नजर आयेंगे।