- कन्या भ्रूण हत्या के लिए बदनाम भिंड के गांवाें की बेटियां ने बदली समाज की साेच
- भिंड जिले का लिंगानुपात 1000 बेटों पर 929 बेटियों तक पहुंचा, 2011 में 855 था
- भिंड . कन्याभ्रूण हत्या के मामले में बदनाम भिंड जिले के लोगों की अब बेटियों की प्रति सोच बदल रही है। इस सोच को खुद बेटियों ने बदला है। जिन गांवों में बेटियों को घर से निकलने की आजादी नहीं थी, आज उन गांव की बेटियों पुलिस व अन्य सरकारी विभागों में सेवाएं दे रही हैं।
2011 की जनगणना में भिंड जिले का लिंगानुपात 1000 बेटों पर 855 बेटियों का था। महिला बाल विकास विभाग के अफसराें के मुताबिक उस समय यह लिंगानुपात प्रदेश में सबसे कम था। जिले के कई गांवाें में बेटियों को जन्म से पहले गर्भ में व जन्म के बाद मुंह में तंबाकू रख मार दिया जाता था, लेकिन आज इन गांवों में बेटियों के जन्म पर खुशियां मनाई जा रही हैं। इसी का नतीजा है वर्तमान में भिंड जिले का लिंगानुपात बढ़कर 1000 बेटों पर 929 बेटियों तक पहुंच गया है।
पांच में से 3 बेटियां पुलिस में : हवलदार सिंह का पुरा में सुरेंद्र तोमर की पांच बेटियां और दो बेटे हैं। सुरेंद्र की तीन बेटियां पुलिस सेवा के लिए चुनी गई हैं। बड़ी बेटे रानी की श्योपुर और दूसरी बेटी नीतू की ग्वालियर पोस्टिंग है। तीसरी बेटी सीता ने भी पुलिस की नौकरी ज्वाइन की है। वे दतिया में पदस्थ हैं। दो छोटी बहनें भी पुलिस में जाने की तैयारी कर रही हैं। सुरेंद्र बताते हैं मेरी तीनों बेटियों की सफलता को देखते हुए गांव के लोगाें में बेटियों के प्रति सोच बदली है, अब वे अपनी बेटियों को पढ़ाते हैं।
गांव की 10 बेटियां पुलिस में : लिंगानुपात के लिए लंबे समय तक बदनाम रहा बंथरी गांव अब परिवर्तन की राह पर है। एक ही गांव की 10 बेटियां पुलिस सेवा में कार्यरत हैं। 2002 के पहले इस गांव में एक भी बेटी पुलिस सेवा में नहीं थी, क्योंकि गांव के लोगों का मानना था बेटियां घर में ही अच्छी लगती हैं। उनका बाहर नौकरी करना ठीक नहीं है, लेकिन गांव की बेटी त्रिवेणी राजावत ने एसआई बनकर इस सोच को बदल दिया। इसके बाद एसआई कीर्ति राजावत, सब-इंस्पेक्टर शिवानी जादौन, आरक्षक रुचि राजावत, दीपा राजावत, प्रेमलता राजावत, संध्या राजावत, मनीषा राजावत, हिमानी राजावत, सोनम राजावत ने त्रिवेणी को प्रेरणा मानते हुए पुलिस में ज्वाइन किया।
नाना के यहां पढ़ाई पूरी कर बनी सिपाही : गोरमी के अछाई गांव ने कन्या भ्रूण हत्या के लिए खूब बदनामी झेली है, किंतु गांव के किसान देवेंद्रसिंह भदौरिया की सोच बेटियों को लेकर कुछ अलग थी। उन्होंने मिडिल की पढ़ाई के बाद बेटी प्रियंका को नाना के यहां पोरसा भेज दिया। 2017 में पहले ही प्रयास में प्रियंका का सिपाही के लिए चयन हो गया। वे इस समय इंदौर पीटीएस में हैं।
राष्ट्रीय बालिका दिवस / जहां गर्भ में ही या जन्म के बाद ही बेटियों को मार दिया जाता था, उन गांवों में आज बेटियों के जन्म पर मनाई जाती है खुशियां