- भाई शमीम ने कहा- खुशी तो है मगर उनके जीवित रहते अवार्ड मिलता तो यह हजार गुना होती
- भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के पूर्व संयोजक स्व. अब्दुल जब्बार जीवनभर पर्यावरण और लोगों के हक की लड़ाई लड़ते रहे।
भोपाल . शनिवार दोपहर सिर्फ एक फोन के आने से घर का माहौल संजीदा हो गया। फोन गृह मंत्रालय से था। फोन करने वाले ने पूछा-आप भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक स्व. अब्दुल जब्बार के घर से बोल रहे हैं? जवाब में हां सुनते ही परिचय पूछा। फिर बताया कि भारत सरकार ने जब्बार साहब को मरणोपरांत पद्मश्री देने का निर्णय लिया है। गृह मंत्रालय के अफसर से यह सुनते ही जब्बार साहब के भाई अब्दुल शमीम (55) की आंखें नम हो गई। उन्होंने भाभी सायरा बानो को यह जानकारी दी तो वे भी अपने आंसूं रोक न सकीं। तीन बच्चे साहिल (16), समीर (12) और मरियम (9) को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वे खुशी का इजहार कैसे करें।
करीब एक घंटे की खामोशी को तोड़ते हुए सायरा ने तीनों बच्चों को गले लगाया और बोली- चलो अल्लाह का शुक्र अदा करो। इसके बाद पूरे परिवार ने नमाज-ए-शुक्रराना अदा की। सवा दो महीने पहले ही जब्बार ने फानी दुनिया को अलविदा कहा था। रात आठ बजे तक ये खबर शहर में फैल गई। इस दौरान राजेंद्र नगर स्थित जब्बार के घर फोन आने लगे तो कई लोग वहां पहुंचे। लेकिन संजीदा माहौल के चलते सब खामोश थे। उधर, बड़ी संख्या में गैस पीड़ित महिलाओं समेत कई जन संगठनों के कार्यकर्ता स्वाभिमान केंद्र पहुंच गए। हरेक की जुबान पर यही था कि पहली बार संघर्षशील व्यक्ति के संघर्ष को केंद्र सरकार ने मान्यता दी है। भाई अब्दुल शमीम ने बताया कि दोपहर तीन बजे स्पेशल ब्रांच से फोन करके हमारे नंबर की पुष्टि की गई थी। बाद में नई दिल्ली से गृह मंत्रालय के एक अफसर ने अवॉर्ड की सूचना दी। उन्होंने कहा कि पद्मश्री पुरस्कार मिलने की घोषणा से वे काफी खुश हैं लेकिन जब्बार के जीवनकाल में ये उन्हें मिलता तो हजार गुना ज्यादा खुशी होती। इसके बाद वे फफक पड़ते हैं। खुद को संभालते हुए कहते है कि जो मेरे भाई के संघर्ष को लेकर तरह-तरह की कहानियां गढ़ते और अफवाहें फैलाते थे, कुदरत ने इसका जवाब दे दिया।
पत्नी बोलीं : वे हमेशा गैस पीड़ितों से लेकर शहर से जुड़े मुद्दों की लड़ाई लड़ते रहे
सायरा बानो कहती हैं कि ये सम्मान उनके संघर्ष को मान्यता देता है। वे हमेशा ही गैस पीड़ितों से लेकर शहर से जुड़े मुद्दों को लेकर लड़ाई लड़ते रहे। खुद भी जहरीली गैस से प्रभावित हुए लेकिन हार नहीं मानी। बीमारी के बाद भी भोपाल के हक में उनका संघर्ष जारी रहा। वे बताती है कि उन्हें असली खुशी तब होगी, जब जब्बार साहब की लड़ाई के अहम मुद्दे हवा, पानी और मिट्टी के प्रदूषित होने का पर्यावरणीय मुआवजा गैस प्रभावितों को मिलेगा। वे कहती है कि जब्बार पिछले तीन दशकों से आंदोलन के साथ -साथ अदालतों में गैस पीड़ितों के हक में याचिकाएं दायर करते रहे।
जब्बार को पद्मश्री / पत्नी सायरा बोलीं-ये सम्मान जब्बार साहब के संघर्ष को मान्यता देता है